- चलता ना छत्र पुरखों का धर.
- सम्मान जगत से पाता है.
कर विविध यत्न अपनाते हैं
"कुल-गोत्र नही साधन मेरा,
- पुरुषार्थ एक बस धन मेरा.
- मैने हिम्मत से काम लिया
खुद मुझे ढूँडने आया है.
"लेकिन मैं लौट चलूँगा क्या?
- अपने प्रण से विचरूँगा क्या?
- या पार्थ हाथ कर्ण का मरण,
तीसरी नही गति मेरी है.
"मैत्री की बड़ी सुखद छाया,
- शीतल हो जाती है काया,
- जो पाकर भी ऐसा तरुवर,
खुद आप नहीं कट जाता है.
"जिस नर की बाह गही मैने,
- जिस तरु की छाँह गहि मैने,
- कैसे कुठार चलने दूँगा,
या आप स्वयं कट जाऊँगा,
"मित्रता बड़ा अनमोल रतन,
- कब उसे तोल सकता है धन?
- आ जाय अगर बैकुंठ हाथ.
कुरूपति के चरणों में धर दूँ.
"सिर लिए स्कंध पर चलता हूँ,
- उस दिन के लिए मचलता हूँ,
- ले लूँ बढ़कर अपने ऊपर.
चाहिए मुझे क्या और भला?
"सम्राट बनेंगे धर्मराज,
- या पाएगा कुरूरज ताज,
- दुर्योधन का संग्राम रहा,
केवल ऋण मात्र चुकाना है.
"कुरूराज्य चाहता मैं कब हूँ?
- साम्राज्य चाहता मैं कब हूँ?
- मुझको न आज तक पहचाना?
धन को मैं धूल समझता हूँ.
"धनराशि जोगना लक्ष्य नहीं,
- साम्राज्य भोगना लक्ष्य नहीं.
- अगणित समृद्धियों का सन्चय,
तृष्णा छू भी ना सकी मन को.
"वैभव विलास की चाह नहीं,
- अपनी कोई परवाह नहीं,
- दान की देव सरिता निर्मल,
निर्धन को भरती रहे सदा.
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